Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharajप्रेमानंद जी महाराज: भारतीय संस्कृति की एक अद्भुत विशेषता यह है कि यहां हर चीज को श्रद्धा और ईश्वर के प्रति समर्पण के साथ देखा जाता है। विशेषकर प्रसाद, जो केवल मिठाई या फल नहीं होता, बल्कि यह भगवान की कृपा का प्रतीक होता है। जब हम किसी धार्मिक स्थल पर प्रसाद लेते हैं, तो यह मान्यता होती है कि ईश्वर का आशीर्वाद हमारे जीवन में आता है। लेकिन आजकल कई लोग प्रसाद को साधारण भोजन समझने लगे हैं। संत प्रेमानंद महाराज जी हमें याद दिलाते हैं कि प्रसाद का सम्मान करना और उसे आदरपूर्वक ग्रहण करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
प्रसाद का वास्तविक महत्व
जब कोई वस्तु भगवान के चरणों में अर्पित की जाती है, तो उसका स्वरूप बदल जाता है। वही भोजन, फल या मिठाई अब केवल अन्न नहीं रह जाता, बल्कि यह भगवान का आशीर्वाद बन जाता है। इसे ग्रहण करना पुण्य का कार्य है। प्रेमानंद महाराज जी का कहना है कि प्रसाद को गिराना या उसका अपमान करना एक बड़ा पाप है। यदि प्रसाद गिर जाए या किसी अशुद्ध स्थान पर चला जाए, तो यह न केवल लेने वाले का बल्कि देने वाले का पुण्य भी नष्ट कर देता है। इसलिए प्रसाद को हमेशा आदर और पवित्रता से संभालना चाहिए।
प्रसाद ग्रहण करने की मर्यादा
महाराज जी बताते हैं कि हमें प्रसाद उतना ही लेना चाहिए जितना हम शुद्ध मन से ग्रहण कर सकें। यह कोई होटल का खाना नहीं है कि आधा खा लिया और आधा छोड़ दिया। यदि हमें प्रसाद मिले तो उसे पूरी श्रद्धा से ग्रहण करना चाहिए। यदि पात्र में कुछ बचा हो, तो थोड़ा पानी डालकर उसे भी ग्रहण करना चाहिए। ये छोटी बातें श्रद्धा के सूक्ष्म रूप हैं।
प्रसाद का अपमान महापाप
आजकल लोग प्रसाद को घर लाकर कोने में रख देते हैं या बिना ध्यान दिए छोड़ देते हैं। कई बार लोग इतना अधिक ले लेते हैं कि बाद में उसे फेंक देते हैं। प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि यह केवल एक गलती नहीं, बल्कि भारी अनादर है। जब आप भगवान के अर्पित अंश को व्यर्थ कर देते हैं, तो यह आपके पुण्यों को नष्ट कर देता है।
जीवन की नश्वरता और सेवा भाव
महाराज जी केवल प्रसाद की मर्यादा नहीं समझाते, बल्कि जीवन का गूढ़ सत्य भी बताते हैं। उनका कहना है कि यह संसार एक सुखद स्वप्न के समान है। जब मृत्यु आती है, तो सब कुछ छूट जाता है। इसलिए हमें सेवा भाव अपनाना चाहिए। माता-पिता की सेवा करना, जरूरतमंदों की सहायता करना और संत-महात्माओं की संगति में रहना ही जीवन को सार्थक बनाता है।
आसुरी प्रवृत्तियों से सावधान
आज की दुनिया में हिंसा और स्वार्थ बढ़ते जा रहे हैं। प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि जब इंसान केवल अपने सुख की चिंता करता है, तभी उसमें राक्षसी भाव पनपता है। इसके विपरीत, यदि हम सेवा भाव से जीना सीख लें, तो समाज में सहयोग और भाईचारा स्थापित होगा।
श्रद्धा और प्रारब्ध
भक्तों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि पूजा-पाठ करने के बावजूद दुख क्यों मिलते हैं। महाराज जी बताते हैं कि यह सब हमारे पूर्व जन्मों का प्रारब्ध है। जीवन की कठिनाइयां हमारी परीक्षा होती हैं। सच्ची भक्ति वही है जो सुख-दुख दोनों में ईश्वर पर विश्वास बनाए रखे।
नाम जप और सेवा का महत्व
जीवन को सुधारने का सबसे सरल उपाय है ईश्वर का नाम जप और सेवा भाव। जब हम नाम स्मरण करते हैं, तो मन शुद्ध होता है। प्रसाद का सम्मान करना और दूसरों की मदद करना यही साधन हैं जो हमें न केवल सांसारिक दुखों से मुक्ति देते हैं, बल्कि मृत्यु के समय भी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं।
प्रेमानंद महाराज जी का संदेश
प्रेमानंद महाराज जी का संदेश स्पष्ट है: प्रसाद को केवल भोजन समझकर उसका अपमान करना महापाप है। यह भगवान का आशीर्वाद है, और इसका आदर करना हर इंसान का धर्म है। जीवन में सेवा भाव, श्रद्धा और नाम जप को अपनाकर ही हम मृत्यु की पीड़ा से बच सकते हैं और ईश्वर के चरणों में स्थान पा सकते हैं।
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